द्वितीय खंड
:
2.
लड़ाई की पुनरावृत्ति
एक ओर हम जनरल स्मट्स को समझौते की शर्तें पालने के लिए मना रहे थे, तो
दूसरी ओर कौम को फिर से जाग्रत करने का कार्य भी उत्साहपूर्वक चला रहे
थे। हमें यह अनुभव हुआ कि हर जगह कौम के लोग फिर से लड़ाई छेड़ने के लिए
और जेल जाने के लिए तैयार ही हैं। हर जगह सभाएँ की गईं। सभाओं में हमने
कौम के लोगों की सरकार के साथ चल रहे पत्र-व्यवहार की बातें समझाई।
'इंडियन ओपीनियन' में तो हर सप्ताह की डायरी छपती ही थी, जिससे कौम सारी
गतिविधि से अच्छी तरह परिचित रहती थी। सभाओं में सबको यह भी समझाया और
चेताया गया कि स्वेच्छा से लिए हुए परवाने निष्फल जाने वाले हैं। लोगों
से यह भी कहा गया कि यदि किसी भी उपाय से खूनी कानून रद्द न हो, तो हमें
उन परवानों को जला ही डालना चाहिए। इससे ट्रांसवाल की सरकार यह समझ जाएगी
कि कौम अपनी बात पर दृढ़ और निश्चिंत है तथा जेल जाने को भी तैयार है।
परवानों की होली जलाने के लिए हर जगह से परवाने इकट्ठे भी किए गए थे।
जिस नए बिल के बारे में हम पिछले प्रकरण में पढ़ चुके हैं, उसे पास करने
की सरकार तैयारियाँ करने लगी। ट्रांसवाल की विधान-सभा में भी कौम ने अरजी
भेजी। लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं आया। अंत में सत्याग्रहियों का
'अल्टीमेटम' सरकार के पास भेजा गया। 'अल्टीमेटम' का अर्थ है निश्चय-पत्र
या धमकी का पत्र, जो लड़ाई के हेतु से ही भेजा जाता है। 'अल्टीमेटम' शब्द
का उपयोग कौम की ओर से नहीं किया गया था। परंतु कौम का निश्चय बताने वाला
जो पत्र भेजा गया था, उसे जनरल स्मट्स ने ही विधान-सभा में 'अल्टीमेटम'
कहा था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, ''जो लोग ऐसी धमकी सरकार को दे
रहे हैं, उन्हें सरकार की शक्ति की कल्पना नहीं है। मुझे दुख ही इस बात
का होता है कि कुछ आंदोलनकारी (एजिटेटर) गरीब हिंदुस्तानियों को भड़काते
हैं; और उन गरीबों पर अगर आंदोलनकारियों का प्रभाव होगा, तो वे बरबाद हो
जाएँगे।'' अखबारों के रिपोर्टरों ने उस अवसर का वर्णन करते हुए लिखा था कि
विधान-सभा के अनेक सदस्य 'अल्टीमेटम' की बात सुनकर अत्यंत क्रोधित हो गए
थे। उनकी आँखें लाल हो गई थीं ...
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हजारों वर्षों से लोगों ने ऐसी अलौकिक घटनाओं का पर्यवेक्षण किया है, उनके
सम्बन्ध में विशेष रूप से चिन्तन किया है और फिर उनमें से कुछ साधारण तत्त्व
निकाले हैं; यहाँ तक कि, मनुष्य की धर्म-प्रवृत्ति की आधारभूमि पर भी विशेष
रूप से, अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ, विचार किया गया है। इन समस्त चिंतन और
विचारों का फल यह राजयोग-विद्या है। यह राजयोग आजकल के अधिकांश वैज्ञानिकों की
अक्षम्य धारा का अवलम्बन नहीं करता-वह उनकी भाँति उन घटनाओं के अस्तित्व को
एकदम उड़ा नहीं देता, जिनकी व्याख्या दुरूह हो; प्रत्युत वह तो धीर भाव से, पर
स्पष्ट शब्दों में, अन्धविश्वास से भरे व्यक्ति को बता देता है कि यद्यपि
अलौकिक घटनाएँ, प्रार्थनाओं की पूर्ति और विश्वास की शक्ति, ये सब सत्य हैं,
तथापि इनका स्पष्टीकरण ऐसी कुसंस्कार भरी व्याख्या द्वारा नहीं हो सकता कि ये
सब व्यापार बादलों के ऊपर अव्यस्थित किसी व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों द्वारा
सम्पन्न होते हैं। वह घोषणा करता है कि प्रत्येक मनुष्य, सारी मानव-जाति के
पीछे वर्तमान ज्ञान और शक्ति के अनन्त सागर की एक क्षुद्र कुल्यान मात्र है।
वह शिक्षा देता है कि जिस प्रकार वासनाएँ और अभाव मानव के अन्तर में हैं, उसी
प्रकार उसके भीतर ही उन अभावों के मोचन की शक्ति भी है; और जहाँ कहीं और जब
कभी किसी वासना, अभाव या प्रार्थना की पूर्ति होती है, तो समझना होगा कि वह इस
अनन्त भण्डार से ही पूर्ण होती है, किसी अप्राकृतिक पुरुष से नहीं।
साहित्य
महामना मदनमोहन मालवीय
धर्मसंस्थापना
व्याख्यान
डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी
गुरुकुल विश्वविद्यालय दीक्षांत भाषण
संस्कृति
रजनीश कुमार शुक्ल
गुरु-केंद्रित है भारतीय परंपरा
कहानी
नीरजा हेमेन्द्र
जड़ों की तलाश
कविताएँ
पूजा तिवारी
विशेष
डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव
ओड़िया के संतों का साहित्यिक प्रदेय
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ISSN 2394-6687
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